2.9.17

प्रकृति (सब गम भुलाकर जीना सिखाती है)

बारिश से पहले
तेज हवा चली थी
झरे थे
कदम्ब के पात
छोटे-छोटे फल
दुबक कर छुप गये थे
फर-फर-फर-फर
उड़ रहे परिंदे
तभी
उमड़-घुमड़ आये
बदरी-बदरा
झम-झम बरसे
बादल
सुहाना हो गया
मौसम
बारिश के बाद
सहमे से खड़े थे
सभी पेड़-पौधे
कोई बात ही नहीं कर रहा था
किसी से!
सबसे पहले
बुलबुल चहकी
कोयल ने छेड़ी लम्बी तान
चीखने लगे
मोर
कौए ने करी
काँव-काँव
और...
बिछुड़े
साथियों को भुलाकर
हौले-हौले
हँसने लगीं
पत्तियाँ।

1 comment:

  1. प्रकृति हर पल को जैसा वह है वैसा सा स्वीकारना सिखाती है..उसके सिवा कुछ किया भी तो नहीं जा सकता..मानव यह बात भूल जाता है और नादाँ बच्चे की तरह अपनी मनवाना चाहता है, यह नहीं देखता कि जमीन पर लोटने से उसकी ही भद्द हो रही है

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